Saturday, May 23, 2009

POLICE POWER NEEDED FOR NARESH KADYAN TO HANDLE HUNTING IN HARYANA

क्षेत्र में शिकारियों के गिरोह सक्रिय

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/haryana/4_6_5490270.html

जिले के मेवात क्षेत्र से सटे ग्रामीण क्षेत्रों में वन्य जीव-जंतुओं के मांस, खाल व अन्य अंगों की तस्करी करने वाले शिकारी गिरोह सक्रिय हो गए है। शाम होते ही ये शिकारी वाहनों पर जंगलों में घूमने लगते है और नील गाय, हिरन, बारहसींगा, तीतर, बटेर, खरगोश व राष्ट्रीय पक्षी मोर आदि का शिकार करते है। विशेष बात यह कि किसी ग्रामीण के देखने और विरोध करने पर ये शिकारी उन्हें गोली मारने की धमकी देकर भगा देते है।

पिछले तीन माह में जिले में कई ऐसी घटनाएं हुई है, जिनमें लोगों ने शिकारियों से कई जीव-जंतुओं को बचाया है। आए दिन लोग जंगलों में शिकारियों को घूमते हुए देखते है। पिछले माह पलवल में सिविल लाइन के पीछे खेतों में एक हिरन का शिकार करते शिकारियों को लोगों ने देखा तथा विरोध कर हिरन को शिकारियों से बचाया। उसके कुछ दिन बाद ही एक बारहसींगा को शिकारियों के चंगुल से बचाया गया। कुछ दिनों से सेवली, मानपुर, कोंडल, बहीन, अंधोप आदि गांवों के जंगलों में शिकारियों के गिरोह देखे गए है।

सूत्रों के मुताबिक मेवात क्षेत्र में इस प्रकार के कई गिरोह सक्रिय है जो गुपचुप तरीके से गाय के मांस के अलावा अन्य जीव-जंतुओं का मांस जिले से बाहर दूसरे प्रांतों में सप्लाई करते है। इसके एवज में उन्हें मोटी रकम प्राप्त होती है। कई तस्कर तो हिरन, बारहसींगा आदि की खाल व मांस तथा मोर के पंख की तस्करी करते है। कुछ तस्करों के तार दिल्ली व अन्य महानगरों के तस्करों से जुड़े हुए है। तीतर, खरगोश आदि जंतुओं के मांस की स्थानीय ढाबों पर भी काफी मांग है।

इन गिरोहो से जुड़े लोग शिकार के लिए या तो दोपहर में निकलते है या फिर शाम होने पर। हथियारों से लैस ये शिकारी अपने साथ मोटरसाइकिल, कार, जीप व अन्य वाहन भी रखते है। शिकार करने के बाद मृत जीव को अपने वाहन में भरकर ले जाते है। किसी ग्रामीण के देख लेने पर या तो वे भाग जाते हैं या फिर उसे बंदूक दिखाते हुए जान से मारने की धमकी देकर भगा देते है।

पुलिस ने पिछले कुछ माह में कई गोतस्करों को गोकशी करते तथा मांस की तस्करी करते गिरफ्तार किया है। लेकिन विडंबना यह है कि पुलिस शिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रही है। पिछले एक वर्ष में मोर व नील गाय की हत्या की भी कई शिकायतें पुलिस में दर्ज हुई हैं, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। सूत्रों की मानें तो पुलिसकर्मियों की कमी और सही रणनीति न होने के कारण पुलिस शिकारियों पर अंकुश नहीं लगा पा रही है।

क्या कहते है अधिकारी

पीएफए हरियाणा के चेयरमैन -http://www.pfaharyana.in/

व ओआईपीए (इंटरनेशनल आर्गेनाइजेशन फॉर एनिमल प्रोटेक्शन)-http://www.oipa.org/oipa/news/oipaindia.html के भारत में प्रतिनिधि नरेश कादियान -http://nareshkadyan.blogspot.com/ ने बताया कि संस्था ने शिकारियों के खिलाफ अभियान चलाया हुआ है। दो दिन पूर्व झज्जार में पांच शिकारियों को वाहन सहित पकड़ा गया है। उन्होंने कहा कि लोगों को भी इस मामले में जागरूक होने की आवश्यकता है। शिकारियों को देखते ही लोग उन्हे सूचना दे, ताकि तुरंत कार्रवाई हो सके।

क्या कहते है एसपी

शनिवार को जिला पुलिस अधीक्षक संजय कुमार ने बताया कि जब भी इस तरह की कहीं से सूचना मिलती है तो पुलिस तुरंत कार्रवाई करती है। उनके अनुसार पुलिस इस प्रकार के मामलों में ढील नहीं बरतती। लोगों को पुलिस की मदद करनी चाहिए और किसी शिकारी को देखने पर तुरंत पुलिस को सूचित करना चाहिए।


http://in.jagran.yahoo.com/news/local/haryana/4_6_5487819.html
छप्पार गांव में प्रतिबंधित वन्य प्राणियों के शिकार मामले में पुलिस प्रशासन ने कुलाना पुलिस चौकी के प्रभारी जयसिंह को निलंबित कर दिया है। मामले की जांच के आदेश दे दिए गए हैं।

उल्लेखनीय है कि 20 मई की सायं छप्पार गांव में कुछ हाईप्रोफाइल लोगों को शिकार करते हुए देखने पर पुलिस के सुपुर्द कर दिया गया था लेकिन संदिग्ध परिस्थितियों में सभी आरोपियों को कुलाना पुलिस ने छोड़ दिया। बाद में मामला तूल पकड़ने पर उनके विरुद्ध विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया। पुलिस उच्चाधिकारियों ने इस मामले में कुलाना पुलिस चौकी प्रभारी की भूमिका को संदिग्ध मानते हुए उन्हें निलंबित कर दिया।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/haryana/4_6_5487827.html

जिले के गांव छप्पार में प्रतिबंधित वन्य प्राणियों का शिकार का प्रयास करते पकड़े गए हाई-प्रोफाइल लोगों के मामले में कुलाना पुलिस चौकी प्रभारी द्वारा बरती गई घोर लापरवाही के बाद पुलिस विभाग अपनी किरकिरी होने से बचने की कोशिशों में जुट गया है। मामला 20 मई की सायं का होने के बावजूद पुलिस ने विभाग के आला अधिकारियों के संज्ञान में आने के बाद मिली फटकार को देखते हुए 24 घंटे बाद मामला दर्ज कर आरोपियों की धरपकड़ के प्रयास शुरू कर दिए है। इन 24 घंटों के दौरान जहां कुलाना पुलिस की लापरवाही का नमूना स्पष्ट देखने को मिला तो वहीं झज्जार पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज करने से पूर्व नवाब पटौदी हिरण शिकार मामले से जुड़े एक अधिवक्ता से भी विचार विमर्श किया गया। तब जाकर पुलिस ने आरोपियों के खिलाफ खाली हवाई फायर करने व मानव जीवन को खतरे में डालने की कोशिश को लेकर भादंस की धारा 285, 336 के अलावा वन्य प्राणी सुरक्षा अधिनियम 1972 की धारा 51 के तहत मामला दर्ज किया है। गौरतलब है कि कुछ इसी तरह की पुलिस की लापरवाही का मामला उस वक्त सामने आया था जब 3 जून 2005 की रात भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान नवाब पटौदी सहित 8 लोगों को हथियारों, दो गाड़ियों व शिकार के दौरान मारे गए काले हिरण तथा तीन खरगोशों के शव के साथ झज्जार पुलिस ने पकड़ा था। उस वक्त भी पुलिस ने नवाबी दबाव नतमस्तक होकर घोर लापरवाही बरतते हुए बिना मामला दर्ज किए हुए ही छोड़ दिया था और हिरण तथा खरगोशों के शव को पशु चिकित्सालय की जमीन में दफना दिया था। अगले ही दिन मामले के स्थानीय मीडिया में छाने के बाद पूरा मामला देशभर के मीडिया में छा गया था। जिसके बाद पुलिस ने 5 जून को मजबूरी वश मामला दर्ज करना पड़ा था। मामला दर्ज करने के बावजूद पुलिस को आरोपियों की धरपकड़ के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ी थी और आखिरकार 18 जून को नवाब पटौदी ने खुद ही आत्म-समर्पण किया था। जिसके बाद उन्हे दो दिन पुलिस हिरासत में भी बिताने पड़े थे। पुलिस ने नवाब पटौदी की जिप्सी को भी 4-5 दिन पूर्व दिल्ली स्थित उनके निवास स्थान से बरामद किया था लेकिन तब तक जिप्सी में लगे हिरण के खून आदि के धब्बों को पूरी तरह धो डाला गया था। हालांकि वह जिप्सी आज भी पुलिस स्टेशन की शान बनी हुई है और नवाब पटौदी के हिरण शिकार मामले की याद थाने में आने-जाने वाले व्यक्ति को ताजा कराती रहती है। वर्तमान में यह मामला फरीदाबाद की पर्यावरण अदालत में विचाराधीन है। लगभग उसी अंदाज की लापरवाही छप्पार मामले में भी कुलाना पुलिस चौकी प्रभारी द्वारा बरती गई। सूत्रों के अनुसार शिकार खेलते वक्त पकड़े गए दिल्ली निवासी राजीव, धीरेन्द्र, रणजीत व मंजीत तथा नौरंगपुर निवासी बलवान को 20 मई की सायं ग्रामीणों के सहयोग से छप्पार कांड के पीड़ितों के सुरक्षाकर्मी जय भगवान ने अपनी जान पर खेलते हुए पकड़कर कुलाना पुलिस को सौंप दिया था। जहां पूछताछ में सभी ने शिकार खेलने के लिए आने की बात कबूल की तो छप्पार कांड के पीड़ितों ने उनका मामला पुलिस पर ही सौंप दिया और अपनी ओर से कार्रवाई न करने की बात कही। चौकी प्रभारी जय सिंह ने ग्रामीणों की ओर से कार्रवाई न करने के बारे में लिखित आश्वासन लेकर आरोपियों को छोड़ने की बात कहकर ग्रामीणों को घर भेज दिया। सूत्रों की मानें तो यहीं से लेनदेन का सिलसिला शुरू हो गया। पांचों व्यक्तियों को पूरी रात चौकी में रखा गया और सुबह सांठगांठ कर सभी को छोड़ दिया गया। पूरे घटनाक्रम से किसी पशु प्रेमी द्वारा विभाग के आला अधिकारियों को अवगत कराया गया। जिसके बाद जिला पुलिस को मिली फटकार से स्थानीय पुलिस में हड़कंप मच गया और अधिकारियों ने चौकी के अलावा घटनास्थल का भी निरीक्षण किया। निरीक्षण के बाद डीएसपी राजीव देशवाल ने गत देर सायं पुलिस कर्मचारियों की लगभग दो घंटे क्लास लेकर गांव छप्पार के चौकीदार राजकुमार के बयान के आधार पर मामला दर्ज किया और नौरंगपुर निवासी उस व्यक्ति को काबू भी किया जो छप्पार मामले में शामिल होने के अलावा नवाब पटौदी शिकार मामले में भी आरोपी है। जिसे आज स्थानीय अदालत में पेश किया गया जहां से उसे 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

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चौकी प्रभारी पर उठती रही है उंगलियां

कुलाना पुलिस चौकी प्रभारी कुछ समय पूर्व तक शहर चौकी प्रभारी थे और उनके कार्यकाल में उनकी कार्यप्रणाली पर अनेकों बार उंगलियां उठी। इतना ही नहीं उन पर अनेक ऐसे मामलों को दबाने के आरोप भी लगे जो दर्जनों लोगों की मौजूदगी में सरेआम अंजाम दिए गए। इतना ही नहीं सांसद दीपेन्द्र हुड्डा द्वारा ली गई कार्यकर्ता बैठक में पूर्व विधायक व वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने तो चौकी प्रभारी का नाम लेकर सरेआम जमकर रिश्वत लेने के आरोप भी लगाए थे। चौतरफा दबाव के चलते काफी समय बाद उन्हे खड्डे-लाईन लगा दिया गया था लेकिन एक बार फिर उन्हे कुलाना पुलिस चौकी का प्रभार दे दिया गया और इस प्रभार को संभालने के साथ ही एक बार फिर उनकी कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आ गई है। पुलिस विभाग ने भी मामला कुलाना पुलिस चौकी के अधीन होने के बाद भी जांच का जिम्मा एस.आई जगदीश चंद को सौंपा है।

http://in.jagran.yahoo.com/news/local/haryana/4_6_5492834.html

गांव छप्पार में 20 मई के शिकार प्रकरण में गांव में 3 अक्टूबर को हुई दोहरे हत्याकांड की घटना को एक बार फिर ताजा कर दिया। दरअसल शिकार मामला इसी घटना की वजह से प्रकाश में आ सका। यह अलग बात है कि कुलाना पुलिस चौकी प्रभारी की लापरवाही के चलते सभी शिकारियों को चौकी से छोड़ दिया गया। हालांकि अगले दिन मामला उछलने के बाद झज्जार पुलिस ने मामला तो दर्ज कर लिया लेकिन मुख्य चारों आरोपी अभी भी पुलिस गिरफ्त से बाहर है। शिकारियों को पुलिस तक पहुंचाने में मुख्य वजह 3 अक्टूबर का गांव छप्पार का दोहरा हत्याकांड रहा। जिसमें पानी निकासी के मामूली विवाद को लेकर नरेन्द्र व अन्य ने नवीन व प्रवीण नामक दो सगे भाईयों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। हत्याकांड को अंजाम देने के काफी दिन तक नरेन्द्र पुलिस पकड़ में नहीं आ पाया था जिससे पीड़ित परिवार में जिंदा बचे मृतकों के एकमात्र भाई अनिल, उनके पिता राजबीर व अन्य परिजनों को खतरा बना हुआ था। जिसे देखते हुए पुलिस विभाग द्वारा उन्हे सुरक्षाकर्मी मुहैया कराया हुआ है। पीड़ितों के अनुसार पखवाड़े भर पूर्व इस हत्याकांड में आरोपी एक महिला दो-तीन अज्ञात व्यक्तियों के साथ गांव में आकर उन्हे मामले की सुनवाई की जून माह की तारीख से पहले जान से मारने की धमकी देकर गई थी। जिसकी शिकायत भी कुलाना पुलिस चौकी में की गई थी। शिकायत के बाद कुलाना पुलिस चौकी द्वारा गंभीर कार्रवाई न किए जाने से पीड़ित परिवार के सदस्य पूरी तरह भय के साये में जी रहे थे कि 20 मई की सायं उन्हे सूचना मिली कि हत्याकांड के मुख्य आरोपी नरेन्द्र के खेत में चार-पांच व्यक्तियों हथियारों से लैस है और उन्होंने फायर भी किए है। नरेन्द्र के खेत में शिकारियों के होने से पीड़ितों को लगा कि कहीं उन्हे खत्म करने के लिए शूटर तो नहीं भेजे गए है और इसी के चलते पीड़ित परिवार के सदस्य सुरक्षाकर्मी जय भगवान को साथ लेकर मौके पर पहुंचे। जिन्हे देखकर आरोपी अपनी सैंट्रो कार में सवार होकर कन्हौरी की ओर जाने वाले कच्चे रास्ते की ओर फरार हो गए और उसी रास्ते में ग्रामीणों के सहयोग से उन्हे काबू कर पुलिस को सौंपा गया।

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जान की बाजी लगा दी थी जय भगवान ने

पीड़ित परिवार की सुरक्षा जिम्मा संभाले पुलिसकर्मी जय भगवान पुलिस में भर्ती होने से पूर्व एनएसजी का कमांडो रह चुका है। जय भगवान ने बताया कि उसने जब आरोपियों को भारी हथियारों से लैस देखा तो उसे लगा कि आरोपी पूरे परिवार को खत्म करने की नीयत से आए है। जिसके बाद उसने उन्हे किसी भी कीमत पर काबू करने का फैसला किया। मात्र एक पिस्टल के दम पर जय भगवान ने कन्हौरी के किसानों को घटना की जानकारी देकर एक किसान के ट्रैक्टर को कार के आगे अड़ा दिया और ट्रैक्टर की आड़ लेकर पिस्टल लहराते हुए अपना परिचय देकर सभी को चुपचाप हथियार डालकर अपना परिचय देने की बात कही। जिसके बाद ही सभी आरोपी कार से उतरे।

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अकेले पुलिसकर्मी ने काबू किया हथियारों का बड़ा जखीरा

आरोपियों को काबू करने के बाद जब जय भगवान ने अन्य व्यक्तियों के सहयोग से कार की तलाशी ली तो उसके साथ-साथ अन्य लोगों की आंखें भी फटी की फटी रह गई। कार में न सिर्फ .22 पिस्टल रखा हुआ था बल्कि तीन-तीन 32 बोर की राइफलों के अलावा लगभग राउंड भी रखे हुए थे। राइफलों की खास बात यह थी कि उन पर टेलीस्कोप साइट लगी हुई थी जिससे पूरी तरह स्पष्ट था कि सभी व्यक्ति लंबे समय तक शिकार खेलने की मंशा पाले हुए थे।

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क्या है टेलीस्कोप

टेलीस्कोप काफी महंगी मिलने वाली उन राइफलों पर लगाया जाने वाला वह यंत्र है जिससे लगभग 1200 मीटर की रेंज तक की किसी भी छोटी-बड़ी वस्तु पर बिल्कुल सटीक निशाना साधा जा सकता है। टेलीस्कोप से 1200 मीटर तक की रेज की वस्तु 100 मीटर तक की रेज जैसी दिखाई देती है। टेलीस्कोप का इस्तेमाल सुरक्षा बलों या सैनिकों द्वारा देश की सीमाओं या घने जंगलों व अशांत क्षेत्रों में बनी चौकियों से दुश्मन की गतिविधियों पर निगाह रखने व उन्हे निशाना बनाने के लिए किया जाता है और आम आदमी को इसके इस्तेमाल की इजाजत किसी विशेष परिस्थिति में ही दी जाती है। वर्तमान में टेलीस्कोप लगने वाली महंगी राइफलों का लाइसेंस लेना नामुमकिन सा ही है।

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वर्षो से जारी है शिकार का धंधा

राज्य व केन्द्र सरकार द्वारा शिकार पर प्रतिबंध लगाने के लिए भले ही कड़े कानूनों का प्रावधान किया गया हो लेकिन उसके बावजूद दूरदराज के क्षेत्रों की बात ही छोड़िए दिल्ली से स्टे झज्जार के गांव नंगला, सिवाड़ी, भटेड़ा गांव के ढहर क्षेत्र के अलावा किलडौद, छप्पार आदि गांवों की बणी में रहने वाले हिरण, खरगोश, तितर आदि का शिकार लगातार होता रहता है। शिकार के मामले का सबसे बड़ा खुलासा वर्ष 2005 के जून माह के पहले सप्ताह में उस वक्त हुआ था जब भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान नवाब मंसूर अली खां पटौदी अपने अन्य साथियों के साथ शिकार के मामले में शिकंजे में आए थे। उससे पूर्व भी लगातार शिकार खेलने की खबरे आती रही है। उस वक्त ऐसा लगा था कि शायद शिकार का यह खेल रुक जाएगा लेकिन 20 मई की सायं छप्पार मामले से फिर साबित हो गया है कि शिकार की घटनाएं लगातार जारी हैं।

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काला हिरण, काला तीतर व अन्य वन्य प्राणी लुप्त होने के कगार पर

वर्ष 2005 में पटौदी शिकार मामले के समय इस पूरे क्षेत्र में हिरणों की संख्या लगभग 4 दर्जन आंकी गई थी जो वर्ष 2001-02 में 100 से ज्यादा बताई जा रही है। खुद वन्य प्राणी विभाग दबे स्वर में इस बात को स्वीकार कर रहा है कि शिकार की घटनाओं के चलते वर्तमान समय में न सिर्फ हिरणों की संख्या दर्जन के स्तर से नीचे आ चुकी है बल्कि काले तीतर व खरगोश भी लुप्त होने के कगार पर पहुंच गए है। हालांकि विभाग शिकार की घटनाओं पर रोकथाम न लगाने को कर्मचारियों की भारी कमी व अन्य सुविधाओं के न होने को मुख्य कारण मान रहा है।

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स्थानीय व्यक्ति करते है शिकारियों का सहयोग

दिल्ली गुड़गांव जैसे आलीशान शहरों से शिकार के लिए आने वाले रईसजादों की मदद के लिए कुछ व्यक्ति थोड़े से आर्थिक लालच में हर वक्त तैयार रहते है। सूत्रों की मानें तो क्षेत्र के एक गांव के एक-दो परिवार ऐसे है जो इस धंधे को पुश्तैनी धंधे के रूप में अपनाएं हुए है। इन नामों से ग्रामीणों के अलावा वन्य प्राणी विभाग भी अच्छी वाकिफ है। सूत्रों के अनुसार इन परिवारों के व्यक्ति क्षेत्र के न सिर्फ चप्पे-चप्पे से वाकिफ है बल्कि उन्हे शिकारियों के मनपसंद पशुओं के छिपने तथा उनके शिकार करने के तरीकों की भी पूरी जानकारी है। मात्र अपना शौक पूरा करने के लिए बेजुबान प्राणियों का शिकार करने के लिए आने वाले रईसजादे सबसे पहले इन्हीं व्यक्तियों से संपर्क करते है जो थोड़े से आर्थिक लालच में इन शिकारियों का पूरा साथ देते है।